क्या आप जानते हैं कि छठ पूजा के दौरान व्रत रखने वाले भक्त कभी-कभी 36 घंटे तक बिना पानी के रहते हैं? यह कठोर तप छठ पूजा की तैयारी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो इस त्योहार की गहराई और महत्व को दर्शाता है।
छठ पूजा हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन त्योहारों में से एक है। यह सूर्य देव और छठी माता ( षष्ठी देवी) को समर्पित एक वैदिक पर्व है। इस त्योहार की तैयारी में कई जटिल रीति-रिवाज और अनुष्ठान शामिल होते हैं, जो इसे एक अनूठा और सार्थक अनुभव बनाते हैं।
छठ पूजा की तैयारी चार दिनों तक चलती है, जिसमें हर दिन का अपना विशेष महत्व होता है। आइए, इन चार दिनों के दौरान की जाने वाली तैयारियों और अनुष्ठानों पर एक नज़र डालें:
पहला दिन छठ पूजा: नहाय खाय
छठ पूजा की तैयारी का पहला दिन “नहाय खाय” के रूप में जाना जाता है। इस दिन, व्रती (मुख्य भक्त) सूर्योदय से पहले उठकर नदी या तालाब में स्नान करते हैं। यह स्नान शुद्धिकरण का प्रतीक है और व्रत की शुरुआत का संकेत देता है।
स्नान के बाद, व्रती घर लौटकर विशेष भोजन तैयार करते हैं। इस भोजन में आमतौर पर चना दाल, अरवा चावल, लौकी की सब्जी और साग शामिल होते हैं। यह भोजन सादा होता है और इसमें प्याज या लहसुन का प्रयोग नहीं किया जाता।
दूसरा दिन छठ पूजा: खरना
दूसरे दिन को “खरना” या “लोहंडा” कहा जाता है। इस दिन व्रती सूर्यास्त तक का कठोर उपवास रखते हैं। शाम को, वे खीर और रोटी का प्रसाद तैयार करते हैं। इस प्रसाद को पहले सूर्य देव को अर्पित किया जाता है, फिर परिवार के अन्य सदस्यों के साथ साझा किया जाता है।
खरना के दिन, घर की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है। पूजा स्थल को साफ किया जाता है और सजाया जाता है। इस दिन से, परिवार के सभी सदस्य शाकाहारी भोजन करना शुरू कर देते हैं और प्याज-लहसुन का सेवन बंद कर देते हैं।
तीसरा दिन छठ पूजा: संध्या अर्घ्य
तीसरा दिन छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन, व्रती बिना खाए-पिए रहते हैं और शाम को अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस दिन की तैयारियाँ सुबह से ही शुरू हो जाती हैं।
सुबह, व्रती विशेष प्रसाद तैयार करते हैं जिसे “ठेकुआ” कहा जाता है। यह गेहूं के आटे, गुड़ और घी से बनाया जाता है। इसके अलावा, केसर के लड्डू और अन्य मिठाइयाँ भी बनाई जाती हैं।
शाम को, व्रती और उनके परिवार के सदस्य नदी या तालाब के किनारे जाते हैं। वे अपने साथ प्रसाद, फल, और पूजा की अन्य सामग्री ले जाते हैं। सूर्यास्त के समय, वे सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं और उनकी आराधना करते हैं।
चौथा दिन छठ पूजा: उषा अर्घ्य
अंतिम दिन को “उषा अर्घ्य” या “भोरका अरघ” कहा जाता है। इस दिन, व्रती सूर्योदय से पहले उठकर नदी या तालाब के किनारे जाते हैं। वे उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं और अपने व्रत को पूरा करते हैं।
इस दिन की तैयारियाँ रात से ही शुरू हो जाती हैं। व्रती रात भर जागते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं। सुबह, वे फिर से प्रसाद और पूजा सामग्री तैयार करते हैं।
सूर्योदय के बाद, व्रती अपना व्रत तोड़ते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद, वे अपने परिवार और रिश्तेदारों को आशीर्वाद देते हैं और उनसे प्रसाद ग्रहण करवाते हैं।
छठ पूजा की तैयारियों का महत्व
छठ पूजा की तैयारियाँ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं हैं, बल्कि ये सामुदायिक एकता और पारिवारिक बंधन को मजबूत करने का माध्यम भी हैं। इस दौरान, पूरा परिवार और समुदाय मिलकर तैयारियों में जुट जाता है।
छठ पूजा की एक खास बात यह है कि यह एक पर्यावरण के अनुकूल त्योहार है। इसमें प्रयोग की जाने वाली सभी सामग्रियाँ प्राकृतिक और जैव-विघटनीय होती हैं। इससे न केवल प्रकृति की रक्षा होती है, बल्कि लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी बढ़ती है।
छठ पूजा की तैयारियाँ शारीरिक और मानसिक शुद्धि पर भी जोर देती हैं। कठोर व्रत और नियमित स्नान शरीर को शुद्ध करते हैं, जबकि भजन-कीर्तन और ध्यान मन को शांत और केंद्रित करते हैं।
इन तैयारियों का एक महत्वपूर्ण पहलू है विशेष व्यंजनों का निर्माण। ठेकुआ, खीर, और अन्य पारंपरिक व्यंजन न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि वे पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं को भी जीवंत रखते हैं।
छठ पूजा की तैयारियाँ एक जटिल और गहन प्रक्रिया हैं जो भक्तों की आस्था और समर्पण को दर्शाती हैं। ये तैयारियाँ न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को भी बढ़ावा देती हैं।
यह त्योहार हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता, परिवार के महत्व, और समुदाय की एकता का पाठ सिखाता है। छठ पूजा की तैयारियाँ हमें याद दिलाती हैं कि जीवन में सफलता और खुशी पाने के लिए कड़ी मेहनत, समर्पण और आस्था की आवश्यकता होती है।
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