छठ पूजा का इतिहास हमें प्राचीन काल की यात्रा पर ले जाता है, जहाँ सूर्य की शक्ति और प्रकृति के साथ मानव का गहरा संबंध था। यह त्योहार न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि हमारी संस्कृति की जड़ों से जुड़ा हुआ एक ऐसा उत्सव है जो हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता सिखाता है।
छठ पूजा का इतिहास वेदों के समय से जुड़ा हुआ है। ऋग्वेद में सूर्य की स्तुति के उल्लेख मिलते हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में सूर्य की पूजा का महत्व रहा है। महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों में भी छठ पूजा का वर्णन मिलता है, जो इसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है।
छठ पूजा का इतिहास
छठ पूजा की उत्पत्ति के बारे में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार, यह पूजा कर्ण द्वारा शुरू की गई थी, जो सूर्य पुत्र थे। दूसरी कहानी के अनुसार, द्रौपदी ने अपने पति पांडवों के लिए राज्य प्राप्त करने के लिए छठ व्रत रखा था। इन कहानियों से पता चलता है कि छठ पूजा का इतिहास भारतीय पौराणिक कथाओं से गहराई से जुड़ा हुआ है।
गहड़वाल वंश के शासन काल में छठ पूजा का विशेष महत्व था। इस वंश की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश के कन्नौज क्षेत्र से हुई थी, और इन्होंने 11वीं से 12वीं शताब्दी तक शासन किया। इस काल में वाराणसी छठ पूजा का एक प्रमुख केंद्र बन गया था। वाराणसी की पवित्र गंगा नदी के तट पर होने वाली छठ पूजा ने इस त्योहार को एक नया आयाम दिया।
छठ पूजा वर्ष में दो बार मनाई जाती है – चैत्र और कार्तिक महीने में। यह बात इस त्योहार के कृषि से जुड़े होने का संकेत देती है। चैत्र में मनाई जाने वाली छठ पूजा को ‘चैती छठ’ कहा जाता है, जो वसंत ऋतु के आगमन का स्वागत करती है। कार्तिक में मनाई जाने वाली छठ पूजा शरद ऋतु की फसल कटाई के बाद मनाई जाती है, जो कृषि समृद्धि के लिए आभार प्रकट करने का अवसर है।
छठ पूजा की विशेषता यह है कि यह एक ऐसा त्योहार है जिसमें सूर्य देव के साथ-साथ उनकी बहन षष्ठी देवी (छठी मैया) की भी पूजा की जाती है। यह बात इस त्योहार को अन्य सूर्य पूजा से अलग करती है। षष्ठी देवी को बच्चों की रक्षक देवी माना जाता है, इसलिए छठ पूजा का विशेष महत्व बच्चों के स्वास्थ्य और कल्याण से जुड़ा हुआ है।
छठ पूजा चार दिनों तक चलने वाला एक कठोर व्रत है। इसमें नहाय-खाय, लोहंडा या खरना, संध्या अर्घ्य, और बिहानिया अर्घ्य जैसे विभिन्न चरण शामिल हैं। इन अनुष्ठानों में कठोर उपवास, पवित्र स्नान, और जल में खड़े होकर ध्यान लगाना शामिल है। यह कठोर साधना व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक शुद्धिकरण का प्रतीक है।
छठ पूजा का एक महत्वपूर्ण पहलू इसका पर्यावरण के अनुकूल होना है। यह एक ऐसा धार्मिक त्योहार है जो पर्यावरण के प्रति सबसे अधिक अनुकूल माना जाता है। इसमें प्रयोग किए जाने वाले सभी सामान प्राकृतिक और जैव-निम्नीकरणीय होते हैं। यह बात इस त्योहार की प्राचीनता और प्रासंगिकता को दर्शाती है।
छठ पूजा के दौरान विशेष व्यंजन तैयार किए जाते हैं जो इस त्योहार की संस्कृति का एक अभिन्न अंग हैं। ठेकुआ, चावल की खीर, और केसर का लड्डू जैसे व्यंजन न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि इनका धार्मिक महत्व भी होता है। ये व्यंजन सूर्य देव और छठी मैया को अर्पित किए जाते हैं, और फिर प्रसाद के रूप में वितरित किए जाते हैं।
छठ पूजा का इतिहास बताता है कि यह त्योहार मूल रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में मनाया जाता था। लेकिन समय के साथ, यह त्योहार अन्य राज्यों और देशों में भी फैल गया है। आज, दुनिया भर में रहने वाले भारतीय मूल के लोग छठ पूजा मनाते हैं, जो इसकी लोकप्रियता और महत्व को दर्शाता है।
छठ पूजा का इतिहास हमें सिखाता है कि यह त्योहार केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपराओं और प्रकृति के साथ हमारे संबंध का प्रतीक है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारे पूर्वजों ने प्रकृति के साथ कैसे सामंजस्य बनाया था और उसका सम्मान किया था। आज के समय में जब पर्यावरण संरक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, छठ पूजा जैसे त्योहार हमें प्रकृति के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का संदेश देते हैं।
छठ पूजा का इतिहास हमें बताता है कि यह त्योहार समय के साथ कैसे विकसित हुआ है। प्राचीन काल में यह एक स्थानीय त्योहार था, लेकिन आज यह एक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाने वाला उत्सव बन गया है। इसने अपनी मूल भावना और परंपराओं को बनाए रखा है, लेकिन साथ ही समय के साथ नए रूप भी धारण किए हैं।
अंत में, छठ पूजा का इतिहास हमें याद दिलाता है कि हमारी संस्कृति और परंपराएँ हमारी पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह त्योहार हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखता है और साथ ही हमें प्रकृति और पर्यावरण के प्रति जागरूक रहने की प्रेरणा देता है। छठ पूजा का इतिहास हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का एक जीवंत उदाहरण है, जो हमें अतीत से सीखने और भविष्य के लिए तैयार रहने की प्रेरणा देता है।
1 thought on “छठ पूजा का इतिहास: सूर्य पूजा से लेकर विश्वव्यापी उत्सव तक की यात्रा”